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त्रिकालदेव, पिशाचराज (मनोज कॉमिक्स) और मेरा ट्रेन का सफ़र Ft. चाचा चौधरी (डायमंड कॉमिक्स)

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नमस्कार दोस्तों आज बात करेंगे मनोज कॉमिक्स (Manoj Comics) के चर्चित किरदार ‘त्रिकालदेव’ (Trikaldev) के उपर लेकिन आपको बता दूँ ये कोई ‘क्रॉसओवर’ इवेंट नहीं बल्कि मेरा एक संस्मरण है, वैसे मुझे त्रिकालदेव को देखकर भोकाल की याद आ गई थी, ये कुछ लोगों के साथ उल्टा भी हो सकता है. इसमें कोई बड़ी बात नहीं है, कॉमिक्स इंडस्ट्री में कई किरदार एक दुसरे से मेल खाते रहते है जैसे अगर आपने राज कॉमिक्स पहले पढ़ी होगी तो आपको ‘भोकाल’ का ही पता होगा लेकिन अगर आपने मनोज कॉमिक्स पढ़ी है तो ‘त्रिकालदेव’ भी आपको जरुर याद होगा. मैं दोनों पढता था और इसके पीछे कवर आर्टवर्क (कॉमिक्स का आवरण) का बड़ा योगदान रहा और एक धोखें का भी(मेरी पहली त्रिकालदेव की कॉमिक्स ‘त्रिकालदेव और पिशाचराज’ के कवर में कदम स्टूडियो का आर्टवर्क है). अब धोका क्यों? क्योंकि मुझे लगा था ये भोकाल का विशेषांक है और भोकाल के कॉमिक्स में चित्रकारी ‘कदम स्टूडियो’ द्वारा ही की जाती थी, इसकी कहानी भी बड़ी अलग है, ऐसा है की कक्षा 8 वीं तक कॉमिक्स हमेशा मेरे पिताजी ही लेकर आते थे, नब्बे के दशक की शुरुवात हो गई थी, मैं अपने ननिहाल से वापस आ रहा था. बिलासपुर स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म नंबर 7 पर नर्मदा एक्सप्रेस में बैठा एक छोटा बच्चा ये सोच रहा था की इस बार कौन सी कॉमिक्स पढ़ने को मिलेगी इस बात से बेखबर की उसकी मुलाकात ‘त्रिकालदेव‘ से होने वाली है.

साभार: मनोज कॉमिक्स
एडिट्स: मैडक्लिक्स

ट्रेन के स्लीपर क्लास में मैं पिताजी का इंतज़ार कर रहा था, नर्मदा एक्सप्रेस बिलासपुर से निकलने ही वाली थी, की अचानक से पिताजी आते हुए दिखें और हाँथ में उनके कॉमिक्स साफ़ साफ़ नजर आ रही थी. मेरा मन हिलोंरे मारने लगा क्योंकि डिमांड भोकाल के कॉमिक्स की कि गई थी, लेकिन कॉमिक्स हाँथ में लेने के बाद भी मुझे समझ नहीं आया की ये भोकाल है ही नहीं!. बाल मन खुशी में इतना बावला था की कॉमिक्स को उलट पलट के देखता रहा, कवर वाकई में जानदार था मेरी तो आंखे नहीं हट रही थी. एक और कॉमिक्स आई थी दीदी के लिए चाचा चौधरी की, शायद वो ‘सड़क का भूत’ थी. माताजी के लिए भी ग्रहशोभा आई थी, मतलब 5-6 घंटे आराम से कटने वाले थे.

साभार: डायमंड कॉमिक्स
एडिट्स: मैडक्लिक्स

आप “चाचा चौधरी और सड़क का भूत” हैलो बुक माइन से खरीद सकते है – Hello Book Mine

पहला हमला चाचाजी पर हुआ, मुझे पता था की डायमंड कॉमिक्स में ‘स्पीच बलून्स’ कम होते है तो पहले उसी को पढ़ा जाये. दो कॉमिक्स मिलने की खुशी का अंदाजा आप लगा ही नहीं सकते (ये सिर्फ शुद्ध कॉमिक्स प्रेमी ही समझ सकते है). सनद रहे मन अभी भी भोकाल के भुलावे में जी रहा था. अभी गम से सामना होना बाकी था. ‘सड़क का भूत’ 3-4 स्टेशन गुजरते गुजरते समाप्ति को ओर बढ़ रही थी और ‘करगी रोड’ नामक स्टेशन आने वाला था, वहाँ के ‘आलू बंडा’ और ‘चाय’ बड़े प्रसिद्ध है.

ट्रेन रुकी नाश्ता पानी हुआ, हमनें बड़े मज़े से करगी रोड की ‘चाय और बंडे’ का स्वाद उठाया एवं ‘चाचा चौधरी और सड़क का भूत’ को भी पढ़ कर ख़तम किया (सड़क के भूत का रिव्यु जल्द ही प्रकाशित होगा कॉमिक्स बाइट पर). तब हिंदी बहोत अच्छी नहीं थी, मतलब की ना भाषा पर पकड़ थी और ना ही रफ़्तार थी. बस पहले चित्र का आनंद उठाओ (सारे पन्ने पलटा के देख लो) फिर दोबारा से ‘स्पीच बबल्स और टेक्स्ट‘ के साथ पढ़ो, इससे पढ़ने का मज़ा दोगुना हो जाता था. तो मैंने देखा की दीदी का कोई खास लगाव नहीं दिखा ‘त्रिकालदेव और पिशाचराज’ कॉमिक्स में, मैंने पूछा क्यों कॉमिक्स ख़राब है क्या? वो बोली नहीं ये तो ‘भोकाल’ है ही नहीं. बस इतना सुनना था की जैसे मुझ पर वज्रपात सा होता प्रतीत हुआ, मुझे समझ नहीं आ रहा था की ये कैसा मज़ाक हो रहा है मेरे साथ. मेरा पूरा मूड ख़राब हो गया, पिताजी ने मेरी भावनाओं को समझा, कॉमिक्स उठा के पढ़ी, सब देखा और समझाया शायद खरीदने में कोई गलती हो गई होगी, लग तो वैसा ही रहा है जैसे भोकाल लगता है, देखो ये मोटी भी है और पृष्ठ संख्या भी ज्यादा है. एक बार पढ़ के देखों क्या पता शायद पसंद आ जाये पर बेटा एक बात ध्यान रखों ‘कॉमिक्स तो कॉमिक्स ही होती है चाहे वो राज हो या डायमंड या फिर मनोज’. इसे पढ़ो और आनंद लो, तब पिताजी का बंधाया ढाढस भी कोई काम न आया पर दी हुई सीख आज भी मानता हूँ, इसीलिए कॉमिक्स को मात्र कॉमिक्स ही रहने दें. खैर, सफ़र लम्बा था तो सोचा चलो भाई देख ही लें की क्या बला है ये ‘पिशाचराज’.

साभार: मनोज कॉमिक्स
एडिट्स: मैडक्लिक्स

जैसा की मैंने बताया कॉमिक्स का आवरण बहोत ही आकर्षक था, तो दुखी मन अंदर से उतना दुखी भी नहीं था. ये ‘मनोज कॉमिक्स विशेषांक’ थी और इसमें राज कॉमिक्स विशेषांक जैसे ही 60 पन्ने थे, इसमें एक इनामी प्रतियोगिता की जानकारी भी थी जिस पर मैं बाद में अलग से कोई आर्टिकल प्रस्तुत करूँगा एवं साथ में मिला था एक ‘मैगनेट स्टीकर’ भी (जिसमें ‘महाबली शेरा’ अपने सिंहासन में विधमान है अपने हाँथ में तलवार पकड़े, पाठकों को बता दूँ की महाबली शेरा भी मनोज कॉमिक्स का एक अन्य किरदार है). ये मनोज कॉमिक्स के खास प्रथम 24 विशेषांक में से एक थी (Manoj Comics 24 Special Digest) जो ईनामी प्रतियोगिता के लिए काफी महत्वपूर्ण थी.

त्रिकालदेव और पिशाचराज कॉमिक्स का एक पैनल
साभार: मनोज कॉमिक्स
एडिट्स: मैडक्लिक्स

त्रिकालदेव और पिशाचराज के लेखक या कहूँ लेखिका थी ‘नाजरा खान’ जी और चित्रण किया था ‘बने सिंह’ जी ने जिसमें उनका सहयोग दिया श्री जी.एस.रजावत जी, गीता जी एवं विजय जी ने. कहानी की शुरुवात होती है ‘कौशल नगर’ से जहाँ के राजा को को विक्रमगढ़ नरेश का निमंत्रण आता है उनके यहाँ होने वाले ‘विश्व शांति सम्मलेन’ में हिस्सा लें, कौशल नरेश तबियत ठीक ना होने के कारण अपने पुत्र और कौशल नगर के युवराज ‘त्रिकालदेव’ को विक्रमगढ़ में अपना प्रतिनिधि बना के भेजते है. त्रिकालदेव ‘दिव्यशक्ति’ धारक है जो की एक ‘तलवार’ है, वो दिव्यशक्ति को अपने गुरु ‘अग्निवेश’ के आश्रम में सुरक्षित रखकर विक्रमगढ़ के लिए निकल पढ़ते है और उसके बाद शुरू होता ‘पिशाचराज’ नामक शैतान का खतरनाक खेल और त्रिकालदेव की उन संकटों से निपटने की कायावाद, अंदर की सारे पृष्ठों को पलटते पलटते मेरा नाम भी ‘त्रिकालदेव’ का प्रशंसकों में शुमार हो गया था.

प्लाट: ‘पिशाचराज’ जो की पिशाचों का सरताज है और वो देवताओं से अमृत प्राप्त करना चाहता है, त्रिकालदेव और उसकी ‘दिव्यशक्ति’ उसकी राह का सबसे बड़ा रोड़ा है और आखिरकार वो अपने कुटिल चालों से ‘दिव्यशक्ति’ प्राप्त कर ‘त्रिकालदेव’ को समाप्त भी कर देता है. अमृत पान के लिए वो स्वर्ग में इंद्र को चुनौती देता है और तीनों लोकों में अपनी पताका लहराना चाहता है.

फिर क्या होता है? क्या पिशाचराज अमृत प्राप्त कर पाता है? त्रिकालदेव का क्या हुआ? ऐसे ही अन्य सवालों के जवाब आपको मिलेंगे – ‘त्रिकालदेव और पिशाचराज‘ पर.

साभार: मनोज कॉमिक्स
एडिट्स: मैडक्लिक्स

इस कथा में हिन्दू धर्म के आराध्य ‘श्री नारायण’ और देवों के देव ‘महादेव’ का भी जबरदस्त ट्विस्ट है. मैंने त्रिकालदेव को ज्यदा नहीं पढ़ा (हमारे यहाँ मनोज कॉमिक्स नहीं मिलती थी हमेशा, जानने के लिए पढ़े मेरा अन्य संस्मरण – कुटकुट गिलहरी) लेकिन जितना भी पढ़ा अच्छा लगा, हाँ आर्टवर्क ‘राम-रहीम’, ‘हवालदार बहादुर’ या ‘क्रुकबांड’ की कॉमिक्स के टक्कर के नहीं थे लेकिन हार्दिक धन्यवाद ‘कदम स्टूडियोज’ और अन्य चित्रकारों का जिन्होंने त्रिकालदेव को एक मज़बूत नींव दी और उसने ‘मनोज कॉमिक्स’ में अपनी दमदार उपस्तिथि दर्ज कराई.

अब मेरा स्टेशन यानि ‘अमलाई’ आ चुका था एवं एक और तलवार ‘दिव्शक्ति’ धारी मेरे कॉमिक्स के संग्रह में शामिल होने के लिए प्रस्थान कर चुका था. अगर ये संस्मरण पसंद आया तो जुड़े रहिए मुझसे ऐसे ही आगे आने वाले अन्य संस्मरणों के लिए, आभार – कॉमिक्स बाइट!

अच्छा जाते जाते एक त्रिकालदेव के ललकार हो जाये – “जय अग्निदेव“!!

Comics Byte

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