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संस्मरण: पिंकी और कुट कुट गिलहरी

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बात तब की है जब मैं कक्षा आठवीं में रहा हूँगा, गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थी, और मेरे ख्याल से तब शायद छत्तीसगढ़ बना नहीं था, तो टेक्निकली वह मध्य प्रदेश का ही हिस्सा था, हाँ भाई क्योंकि ये संस्मरण भी नब्बें के ही दशक का है और छत्तीसगढ़ की स्थापना सन 2000 की है, बाकि कहने तात्पर्य ये है की बिलासपुर एक छोटा शहर ही है, लेकिन आस पास के लगभग २५०-४०० वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में सबसे आधुनिक शहर भी यही था, अब आप कहेंगे आधुनिक से क्या मतलब?, “मतबल” ये की हमारे गाँव में तो कॉमिक्स की छोटी दुकानें होती थी, या किराना एवम् स्पोर्ट्स की शॉप लेकिन बिलासपुर में बड़ी दुकानों की कोई कमी नहीं थी, बड़ी कहने का मतलब है “विशाल”, आज भी बिलासपुर रेलवे स्टेशन के वीलर्स से बड़ी कॉमिक्स की दुकान मैंने तो नहीं देखी जिनका हिंदी कॉमिक्स का स्टॉक इतना वृहद था (नब्बे के दौर में, आज तो शायद एक भी न मिलें).

राज कॉमिक्स, तुलसी कॉमिक्स, मनोज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स और फोर्ट कॉमिक्स तो मैंने खुद खरीदी है वहां से और मेरे कलेक्शन में आज भी वो कॉमिक्सें चार चाँद लगा रही है, मेरे पिताजी ने हमेशा मेरे इस शौक को बढ़ावा दिया और मुझे मेरी पहली कॉमिक्स से मिलाने वाले कर्णधार भी वो रहे. उस पे भी बात करेंगे किसी और दिन लेकिन आज का दिन है आपको पिंकी और कुट कुट गिलहरी के बारे में बताने का.

स्टेशन में उत्कल एक्सप्रेस ट्रेन के रुकते ही मैं रेलवे बुक स्टाल की तरफ दौड़ पड़ा और व्हीलर्स पे जाकर ही रुका, मेरी मम्मी भी मेरा पीछा करते हुए वहां तक पहुँच चुकी थी, मेरी नज़रें बस राज कॉमिक्स पर ही टिकी हुयी थी, दुकान में खड़े अंकल इस बात को ताड़ गए और पूरा बंडल उठा कर सामने काउंटर पर रख दिया, नागराज और ध्रुव की २ इन १ मुझे कहीं न दिखी पर, मन उदास हो गया की इस टकराव का कब से वेट कर रहा था और कॉमिक्स स्टाल पे उपलब्ध ही नहीं है, अब क्या करूँ सोच ही रहा था की अंकल समझ गए की मुझे मेरी पसंद की किताब नहीं मिली जबकि 100+ से उपर कॉमिक्स मैं छांट चुका था (ये जूनून हर कॉमिक्स प्रेमी को होता है). मेरे पूछने के बाद उन्होंने मुझे आश्वस्त करते हुए कुछ दिनों के बाद आने को कहा (उसकी भी अलग कहानी है), बहरहाल भोकाल की “किलारी का रहस्य” मैंने उठा ली क्योंकि मुझे तो भोकाल का चार्म अलग ही लगता था, इसका श्रेय संजय गुप्ता जी, वाही जी और कदम स्टूडियोज को जाता है (पढ़े भोकाल बेमिसाल २२ साल), क्योंकि कॉमिक्स खरीदने में भी एक सीमा तय थी (एक बार में एक ही कॉमिक्स).

मेरे नानाजी जो की बिलासपुर मे रहते थे, उनके वहां गर्मियों में मेरे काफी चचेरे भाई बहन भी आते थे, भई गर्मियों की छुट्टी की बात ही अलग थी उस समय, जीत सिनेमा हाल में एक फिल्म हमेशा बनती थी, गोल बाज़ार (बड़ा बाज़ार) जाना तय था और वहां जाकर मौसा जी (रेस्तरां) में डोसा, लस्सी की पार्टी भी, वहां जाने आने के लिए हम ३ पहिये वाला साइकिल रिक्शा लेते थे, एक छोटे से ब्रिज के बाजु में दूर एक छोटी सी दुकान में रस्सी से लटकती पिंकी की कॉमिक्स जो उसके टेबल फैन के हवा के झोंके के कारण इधर उधर झांक रही थी, मेरी नज़रों से बच न सकी. गोल बाज़ार जाने का वो मुख्य रास्ता था, अब झूठ नहीं कहूँगा आपसे क्योंकि मेरा ध्यान पिंकी ने नहीं खींचा था, डायमंड कॉमिक्स मेरी दीदी पढ़ा करती थी, और मै राज कॉमिक्स, वहां पर हरे मानव यानि कि स्नेकमैन की एक कॉमिक्स “नागराज की कब्र” ने मेरा ध्यान आकर्षित किया था (उसका भी रिव्यु जल्द), लेकिन उसके साथ मै पिंकी की कॉमिक्स कुट कुट गिलहरी भी खरीद लाया ताकि 2 कॉमिक्स खरीदी जा सके (लालच), और दीदी को भी डायमंड कॉमिक्स मिल जाये.

प्राण सर के इस किरदार का वजन भी अलग था, छोटी सी पिंकी बड़ी शरारती और उसकी साथी कुट कुट जो की एक गिलहरी है वो उससे भी ज्यदा शरारती, दोनों की धमाचौकड़ी और नटखटता हमेशा उसके पडोसी झपट जी, उसके दादाजी-नानी, उसकी मम्मी-पापा को परेशान करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती. पिंकी के किरदार की रचना कार्टूनिस्ट प्राण कुमार शर्मा ने 1978 में की थीं और तभी से पिंकी हम लोगो का मनोरंजन करती आ रही है, कॉमिक्स के गुदगुदाते किरदार आपको हंसाने और मनोरंजन करने में सफल रहते है, पिंकी और कुट कुट गिलहरी भी ऐसी सी एक मनोरंजक कॉमिक्स है. कुट कुट के कारनामे आपको ठहाके मारने पर मजबूर कर देंगे और पिंकी के भोलेपन के भी आप कायल हो जायेंगे.

कहानी: वैसे तो प्राण सर की हर कॉमिक्स में 4 से 5 कहानियाँ होती थी पर यहाँ पर हम बस उसकी पहली कहानी पर ही बात करेंगे. कुट कुट की शरारतों से पूरा मोहल्ला परेशान है, यहाँ तक की पिंकी के दादाजी भी. गुस्से में आकर वो कुट कुट का गोगा नाम के एक दुष्ट अपराधी से अपहरण करवा देते है और उसे जंगलो में छोड़ आने को कहते है, वहां गोगा से कुट कुट बच निकलती है और गोगा मदद लेता है अपने दोस्त चौगा की, क्या हुआ कुट कुट का? क्या गोगा और चौगा अपने कार्य में सफल हो सके? पिंकी ने ऐसे हालातों को काबू कैसे किया, यही सब बताया गया है सरल शब्दों में पिंकी और कुट कुट गिलहरी में!

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